जागती आँखों से वाबस्ता दिया माँगे है
वक़्त-ए-उम्मीद बसारत की दुआ माँगे है
गर्द-आलूद फ़ज़ाओं में भटकता मौसम
गुम-शुदा लम्हा से ख़ुद अपना पता माँगे है
अक्स-दर-अक्स हक़ीक़त की लकीरें रौशन
ख़्वाब-दर-ख़्वाब कोई हुस्न-ए-अदा माँगे है
अपनी मजरूह निगाहों का सफ़र है जारी
जुस्तुजू कर्ब-ए-मसाफ़त की दवा माँगे है
मुंसिफ़-ए-वक़्त की मग़रूर समाअत 'ख़ावर'
गूँगे मुजरिम से सदाक़त की नवा माँगे है

ग़ज़ल
जागती आँखों से वाबस्ता दिया माँगे है
ख़ावर नक़ीब