जागते हैं सोते हैं
हर्फ़ आँखें होते हैं
रौशनी के प्याले में
उँगलियाँ डुबोते हैं
सुब्ह जैसी आँखों में
आसमान सोते हैं
जैसी नींद होती है
वैसे ख़्वाब होते हैं
पीने वाले पानी से
लोग पाँव धोते हैं
बारिशों की रातों के
दिन अजीब होते हैं
धूप जैसी चिड़िया के
साए पर भिगोतें हैं
जब वो साथ होता है
हम अकेले होते हैं
ग़ज़ल
जागते हैं सोते हैं
नज़ीर क़ैसर