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जाग और देख ज़रा आलम-ए-वीराँ मेरा | शाही शायरी
jag aur dekh zara aalam-e-viran mera

ग़ज़ल

जाग और देख ज़रा आलम-ए-वीराँ मेरा

सीमाब अकबराबादी

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जाग और देख ज़रा आलम-ए-वीराँ मेरा
सुब्ह के भेस में निकला है गरेबाँ मेरा

फ़ितरत-आरा-ए-जुनूँ है तन-ए-उर्यां मेरा
मेरी बे-चारगियाँ हैं सर-ओ-सामाँ मेरा

ग़लबा-ए-यास बजा शिद्दत-ए-हिर्मां तस्लीम
मैं समझता हूँ कि मरना नहीं आसाँ मेरा

तोड़ कलियाँ मगर ऐ ख़ाना-बर-अंदाज़-ए-चमन
अर्ज़ ये है कि नशेमन न हो उर्यां मेरा

तुम्हें क्यूँ मद्द-ए-नज़र अब है ख़राबी उस की
तुम तो कहते थे कि घर है दिल-ए-इंसाँ मेरा

था ये फ़ैज़-ए-निगह-ए-लुत्फ़-ओ-करम ऐ 'सीमाब'
हो गया हर्फ़-ए-ग़लत दफ़्तर-ए-इस्याँ मेरा