जाग और देख ज़रा आलम-ए-वीराँ मेरा
सुब्ह के भेस में निकला है गरेबाँ मेरा
फ़ितरत-आरा-ए-जुनूँ है तन-ए-उर्यां मेरा
मेरी बे-चारगियाँ हैं सर-ओ-सामाँ मेरा
ग़लबा-ए-यास बजा शिद्दत-ए-हिर्मां तस्लीम
मैं समझता हूँ कि मरना नहीं आसाँ मेरा
तोड़ कलियाँ मगर ऐ ख़ाना-बर-अंदाज़-ए-चमन
अर्ज़ ये है कि नशेमन न हो उर्यां मेरा
तुम्हें क्यूँ मद्द-ए-नज़र अब है ख़राबी उस की
तुम तो कहते थे कि घर है दिल-ए-इंसाँ मेरा
था ये फ़ैज़-ए-निगह-ए-लुत्फ़-ओ-करम ऐ 'सीमाब'
हो गया हर्फ़-ए-ग़लत दफ़्तर-ए-इस्याँ मेरा
ग़ज़ल
जाग और देख ज़रा आलम-ए-वीराँ मेरा
सीमाब अकबराबादी