जादूई माहौल में हर लेने वाली छतरियाँ
मल्गजी रुत दूधिया हाथों में काली छतरियाँ
हम ने जिन क़द्रों को समझा था ख़याली छतरियाँ
थीं वहीं तूफ़ान में काम आने वाली छतरियाँ
ग़म के सहरा की तपिश ख़ुद झेलनी होगी हमें
बेवफ़ा अहबाब हैं साए से ख़ाली छतरियाँ
आज ख़ुद ही बे-तहफ़्फ़ुज़ हैं ज़माने के ख़ुदा
वक़्त वो है ख़ुद हैं साए की सवाली छतरियाँ
तेरी फ़ुर्क़त की तपिश कुछ इन से कम होती नहीं
जाम-ओ-रक़्स-ओ-नग़्मा हैं सब देखी-भाली छतरियाँ
ये हसीं चेहरे ये गोरे सानवी चिकने बदन
ये ग़मों की धूप में काम आने वाली छतरियाँ
काट ही लेगा बशर दुख की भरी बरसात को
तान कर झूटी उमीदों की ख़याली छतरियाँ
धूप के मारे हुओ कोहसार के दामन में आओ
पत्ता पत्ता साएबाँ हैं डाली डाली छतरियाँ
ग़ज़ल
जादूई माहौल में हर लेने वाली छतरियाँ
शबाब ललित