EN اردو
जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए | शाही शायरी
jadu-e-KHwab mein kuchh aise giraftar hue

ग़ज़ल

जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए

हसन नईम

;

जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए
बारिश-ए-संग हुई भी तो न बेदार हुए

जब थे ख़ुश-हाल भले लगते थे रिश्ते ग़म के
अब वही रिश्ते मिरी जान का आज़ार हुए

जब तलक पाँव में वहशत थी जुनूँ में ताक़त
न किसी साए में बैठे न कभी ख़ार हुए

मैं ने जब गल्फ़ में कुछ दौलत-ओ-इज़्ज़त पाई
आलम-ए-फ़न भी मिरे हक़ में रज़ाकार हुए

जब खुले नक़्द के औसाफ़ ब-फ़ैज़-ए-नक़्दी
कुछ रिसालों के एडीटर भी तरफ़-दार हुए

वस्ल से जिन के है मग़रिब में क़यामत सी बपा
उन ही लौंडों के लिए 'मीर'-जी बीमार हुए

गोलियाँ चलने को तय्यार थीं पहले से 'नईम'
हम तो बस झंडा उठाने के गुनहगार हुए