EN اردو
इतनी बार मोहब्बत करना कितना मुश्किल हो जाता है | शाही शायरी
itni bar mohabbat karna kitna mushkil ho jata hai

ग़ज़ल

इतनी बार मोहब्बत करना कितना मुश्किल हो जाता है

अली इमरान

;

इतनी बार मोहब्बत करना कितना मुश्किल हो जाता है
इंसानों पे हिजरत करना कितना मुश्किल हो जाता है

शब भर तारों को गिनने में कितनी दुश्वारी है यार
जागते रहना आदत करना कितना मुश्किल हो जाता है

मेरे अंदर की सब रातें साए जितनी रहती हैं
तारीकी से सोहबत करना कितना मुश्किल हो जाता है

कितना मुश्किल हो जाता है करना और न करना सब
ये करना तुम ये मत करना कितना मुश्किल हो जाता है

तुझ को छूने की ख़्वाहिश में पल पल जलता रहता हूँ
तेरे जिस्म की हसरत करना कितना मुश्किल हो जाता है