इतने ख़ामोश भी रहा न करो
ग़म जुदाई में यूँ किया न करो
ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जा कर मगर रहा न करो
कुछ न होगा गिला भी करने से
ज़ालिमों से गिला किया न करो
उन से निकलें हिकायतें शायद
हर्फ़ लिख कर मिटा दिया न करो
अपने रुत्बे का कुछ लिहाज़ 'मुनीर'
यार सब को बना लिया न करो
ग़ज़ल
इतने ख़ामोश भी रहा न करो
मुनीर नियाज़ी