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इतने ख़ामोश भी रहा न करो | शाही शायरी
itne KHamosh bhi raha na karo

ग़ज़ल

इतने ख़ामोश भी रहा न करो

मुनीर नियाज़ी

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इतने ख़ामोश भी रहा न करो
ग़म जुदाई में यूँ किया न करो

ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जा कर मगर रहा न करो

कुछ न होगा गिला भी करने से
ज़ालिमों से गिला किया न करो

उन से निकलें हिकायतें शायद
हर्फ़ लिख कर मिटा दिया न करो

अपने रुत्बे का कुछ लिहाज़ 'मुनीर'
यार सब को बना लिया न करो