इतने आसूदा किनारे नहीं अच्छे लगते
एक ही जैसे नज़ारे नहीं अच्छे लगते
इतनी बे-रब्त कहानी नहीं अच्छी लगती
और वाज़ेह भी इशारे नहीं अच्छे लगते
ज़रा धीमी हो तो ख़ुशबू भी भली लगती है
आँख को रंग भी सारे नहीं अच्छे लगते
पास आ जाएँ तो बे-नूरी मुक़द्दर ठहरे
दूर भी इतने सितारे नहीं अच्छे लगते
अपनी गुमनामी के सहराओं में ख़ुश रहती हूँ
अब मुझे शहर तुम्हारे नहीं अच्छे लगते
ग़ज़ल
इतने आसूदा किनारे नहीं अच्छे लगते
यासमीन हमीद