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इतना पुर-जोश मेरे दर्द का धारा तो न था | शाही शायरी
itna pur-josh mere dard ka dhaara to na tha

ग़ज़ल

इतना पुर-जोश मेरे दर्द का धारा तो न था

जली अमरोहवी

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इतना पुर-जोश मेरे दर्द का धारा तो न था
क्या पस-ए-पर्दा कहीं क़ुर्ब तुम्हारा तो न था

तुम ने अलक़ाब बदल कर मुझे मक्तूब लिखा
उस तग़य्युर में कहीं तल्ख़ इशारा तो न था

लाज़िमा क़त-ए-मरासिम से ये तफ़रीक़ हुई
वर्ना ये इश्क़ मुझे आप से प्यारा तो न था

बाल खोले हुए क्यूँ आ गए पर्दे के क़रीब
मैं नय आवाज़ सुनाई थी पुकारा तो न था

हम तो मौज़ूँ थे किसी आलम-ए-उल्फ़त के लिए
ज़र की दुनिया में 'जली' काम हमारा तो न था