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इतना मानूस है दिल आप के अफ़्साने से | शाही शायरी
itna manus hai dil aap ke afsane se

ग़ज़ल

इतना मानूस है दिल आप के अफ़्साने से

नसीर आरज़ू

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इतना मानूस है दिल आप के अफ़्साने से
अब किसी तौर बहलता नहीं बहलाने से

जाम-ओ-मीना के तअय्युन से है बाला साक़ी
ज़र्फ़ देखा नहीं जाता किसी पैमाने से

आओ तजदीद-ए-वफ़ा फिर से करें हम वर्ना
बात कुछ और उलझ जाएगी सुलझाने से

है समझना तो मोहब्बत से गुज़र ऐ हमदम
बात आएगी समझ में न यूँ समझाने से

अब न चाहेंगे किसी और को तस्लीम मगर
फ़ाएदा क्या है मिरे सर की क़सम खाने से

मैं तही-होश सही आप का इरशाद बजा
आप बेकार उलझने लगे दीवाने से

'आरज़ू' शिकवा-ब-लब हो तो रहे हो लेकिन
फ़ाएदा गुज़री हुई बात को दोहराने से