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इतना करम इतनी अता फिर हो न हो | शाही शायरी
itna karam itni ata phir ho na ho

ग़ज़ल

इतना करम इतनी अता फिर हो न हो

अजमल सिद्दीक़ी

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इतना करम इतनी अता फिर हो न हो
तुम से सनम वादा वफ़ा फिर हो न हो

ये ही हैं दिन, बाग़ी अगर बनना है बन
तुझ पर सितम किस को पता फिर हो न हो

शायद ये मंज़र उस के आने तक ही हो
आँखों में दम अटका हुआ फिर हो न हो

मंज़िल तक अपना साथ है, गाते चलें
तू हम-क़दम तू हम-नवा फिर हो न हो

आगे थकन कर दे न कम शौक़-ए-सफ़र
नक़्श-ए-क़दम पर जाँ फ़िदा फिर हो न हो