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इतना एहसास तो दे पालने वाले मुझ को | शाही शायरी
itna ehsas to de palne wale mujhko

ग़ज़ल

इतना एहसास तो दे पालने वाले मुझ को

असग़र मेहदी होश

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इतना एहसास तो दे पालने वाले मुझ को
मैं सँभल जाऊँ अगर कोई सँभाले मुझ को

बे-सहारा हूँ किसी वक़्त भी गिर जाऊँगा
अपनी दीवार में जो चाहे मिला ले मुझ को

डूबने से जो बचाएगा वो क्या पाएगा
मैं अभी लाश नहीं कौन निकाले मुझ को

मैं पयम्बर तो नहीं था कि अमाँ पा जाता
क्या छुपाते भी कहीं मकड़ी के जाले मुझ को

मैं भी रौशन हूँ मगर सुब्ह के तारे की तरह
चंद लम्हों में डुबो देंगे उजाले मुझ को

क्या ज़रूरी है कि दुश्मन ही के सर जाए अज़ाब
कर दें अहबाब ही क़ातिल के हवाले मुझ को

तुझ से हालात के पत्थर न सहे जाएँगे
अपने एहसास का आईना बना ले मुझ को