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इतना एहसान और करता कौन | शाही शायरी
itna ehsan aur karta kaun

ग़ज़ल

इतना एहसान और करता कौन

शबी फ़ारूक़ी

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इतना एहसान और करता कौन
मुझे से बढ़ कर मुझे समझता कौन

दीन-ओ-दुनिया से मावरा था मैं
मेरी बातों पे कान धरता कौन

मैं न होता तो यूँ लब-ए-दरिया
आबरू तिश्नगी की रखता कौन

जो किसी ने लिखा नहीं वो हर्फ़
मैं न लिखता तो और लिखता कौन

खोट मुझ में तो सब ने देख लिया
अपना सोना मगर परखता कौन

जिस की मंज़िल हो ख़्वाब-ए-दर-बस्ता
उस मुसाफ़िर के साथ चलता कौन

आइना अपने रू-ब-रू रख कर
मैं न हँसता तो मुझ पे हँसता कौन