इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
अंजुमन-साज़ हुआ है दिल-ए-तन्हा मेरा
सर-निगूँ होने नहीं देता ये एहसास मुझे
मैं तो टूटा हूँ मगर ख़्वाब न टूटा मेरा
कौन हैं वो जिन्हें आफ़ाक़ की वुसअत कम है
ये समुंदर न ये दरिया न ये सहरा मेरा
एक ही लम्हा-ए-मौजूद में मौजूद हूँ मैं
और इक लम्हे का होना है न होना मेरा
दिल में सौ तीर तराज़ू हुए तब जा के खुला
इस क़दर सहल न था जाँ से गुज़रना मेरा
कैसे तर्सील-ए-सुख़न की कोई सूरत निकले
ये ज़बाँ मेरी नहीं है न ये लहजा मेरा
मैं अभी सैर-ए-जहाँ-बीनी में गुम हूँ 'अश्फ़ाक़'
आसमाँ देख रहा है अभी रस्ता मेरा
ग़ज़ल
इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
अशफ़ाक़ हुसैन