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इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा | शाही शायरी
itna be-nafa nahin us se bichhaDna mera

ग़ज़ल

इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा

अशफ़ाक़ हुसैन

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इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
अंजुमन-साज़ हुआ है दिल-ए-तन्हा मेरा

सर-निगूँ होने नहीं देता ये एहसास मुझे
मैं तो टूटा हूँ मगर ख़्वाब न टूटा मेरा

कौन हैं वो जिन्हें आफ़ाक़ की वुसअत कम है
ये समुंदर न ये दरिया न ये सहरा मेरा

एक ही लम्हा-ए-मौजूद में मौजूद हूँ मैं
और इक लम्हे का होना है न होना मेरा

दिल में सौ तीर तराज़ू हुए तब जा के खुला
इस क़दर सहल न था जाँ से गुज़रना मेरा

कैसे तर्सील-ए-सुख़न की कोई सूरत निकले
ये ज़बाँ मेरी नहीं है न ये लहजा मेरा

मैं अभी सैर-ए-जहाँ-बीनी में गुम हूँ 'अश्फ़ाक़'
आसमाँ देख रहा है अभी रस्ता मेरा