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इस्म सारे भूल बैठा शो'बदा-गर किस तरह | शाही शायरी
ism sare bhul baiTha shoabda-gar kis tarah

ग़ज़ल

इस्म सारे भूल बैठा शो'बदा-गर किस तरह

मुनव्वर अज़ीज़

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इस्म सारे भूल बैठा शो'बदा-गर किस तरह
जम्अ' होना है मुझे अब के बिखर कर किस तरह

मैं दुआ के पर लगा कर भी पहुँच पाता नहीं
आसमाँ उठता चला जाता है ऊपर किस तरह

वाहिमे कैसे यक़ीं बन कर लहू में रच गए
ज़लज़ले फैले मिरी मिट्टी के अंदर किस तरह

वसवसों ने आन घेरा है मुझे फिर किस लिए
रख दिया मैं ने क़दम मौज-ए-हवा पर किस तरह

देखते हैं सब 'मुनव्वर' सोचता कोई नहीं
अक्स रह जाता है आईने के अंदर किस तरह