EN اردو
इस्लाह-ए-अहल-ए-होश का यारा नहीं हमें | शाही शायरी
islah-e-ahl-e-hosh ka yara nahin hamein

ग़ज़ल

इस्लाह-ए-अहल-ए-होश का यारा नहीं हमें

सिराजुद्दीन ज़फ़र

;

इस्लाह-ए-अहल-ए-होश का यारा नहीं हमें
इस क़ौम पर ख़ुदा ने उतारा नहीं हमें

ढूँडें कहाँ सहर को तुम्हें ऐ ग़ज़ाल-ए-शब
अब नाम भी तो याद तुम्हारा नहीं हमें

अब क्या सँवर सकेंगे हम आवारगान-ए-इश्क़
सदियों के जब्र ने तो सँवारा नहीं हमें

हाथों में है हमारे गरेबान-ए-काएनात
लेकिन अभी जुनूँ का इशारा नहीं हमें

ढूँडो कोई नई रविश-ए-शाइरी 'ज़फ़र'
उस्लूब दूसरों का गवारा नहीं हमें