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इसी तरह मिरी आँखों को बंद होना था | शाही शायरी
isi tarah meri aaankhon ko band hona tha

ग़ज़ल

इसी तरह मिरी आँखों को बंद होना था

क़ासिद अज़ीज़

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इसी तरह मिरी आँखों को बंद होना था
तिरे ग़ुरूर का परचम बुलंद होना था

निगह के साथ कहाँ तक सफ़र किया जाए
थकन से चूर मिरा बंद बंद होना था

हिसार-ए-ज़ात है या कोई आईना-ख़ाना
न इस क़दर भी हमें ख़ुद-पसंद होना था

शुआ-ए-महर का दम भी बड़ा ग़नीमत है
फ़सील-ए-शब को सहर तक बुलंद होना था

बहुत दबीज़ सही चादर-ए-शब-ए-ज़ुल्मत
दिए की लौ को मगर सर-बुलंद होना था

बंधे हैं सब्ज़ रिबन में सियाह बाल उस के
कमंद को भी असीर-ए-कमंद होना था