इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके
कहेंगे लोग कि दो दिन निबाह कर न सके
हमें जो देख लिया झुक गई हया से आँख
इधर-उधर सर-ए-महफ़िल निगाह कर न सके
ख़ुदा के सामने आया कुछ इस अदा से वो शोख़
कि मुँह से उफ़ भी ज़रा दाद-ख़्वाह कर न सके
तिरे करम का भरोसा ही ज़ाहिदों को नहीं
इसी लिए तो ये खुल कर निगाह कर न सके
रहा ये पास हमें आप की नज़ाकत का
कि दिल का ख़ून हुआ मुँह से आह कर न सके
तुम्हें 'हफ़ीज़' से नफ़रत है तो ये फ़िक्र है क्यूँ
किसी हसीन से वो रस्म-ओ-राह कर न सके
ग़ज़ल
इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके
हफ़ीज़ जौनपुरी