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इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके | शाही शायरी
isi KHayal se tark unki chah kar na sake

ग़ज़ल

इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके

हफ़ीज़ जौनपुरी

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इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके
कहेंगे लोग कि दो दिन निबाह कर न सके

हमें जो देख लिया झुक गई हया से आँख
इधर-उधर सर-ए-महफ़िल निगाह कर न सके

ख़ुदा के सामने आया कुछ इस अदा से वो शोख़
कि मुँह से उफ़ भी ज़रा दाद-ख़्वाह कर न सके

तिरे करम का भरोसा ही ज़ाहिदों को नहीं
इसी लिए तो ये खुल कर निगाह कर न सके

रहा ये पास हमें आप की नज़ाकत का
कि दिल का ख़ून हुआ मुँह से आह कर न सके

तुम्हें 'हफ़ीज़' से नफ़रत है तो ये फ़िक्र है क्यूँ
किसी हसीन से वो रस्म-ओ-राह कर न सके