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इसी दुनिया में दुनियाएँ हमारी भी बसी हैं | शाही शायरी
isi duniya mein duniyaen hamari bhi basi hain

ग़ज़ल

इसी दुनिया में दुनियाएँ हमारी भी बसी हैं

मोहम्मद इज़हारुल हक़

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इसी दुनिया में दुनियाएँ हमारी भी बसी हैं
रविश से सीढ़ियाँ मरमर की पानी में गई हैं

महल है और सुलगता ऊद है और झाड़-फ़ानूस
लहू से मुश्क आज़ा से शुआएँ फूटती हैं

तमन्ना के जज़ीरे आसमानों में बने हैं
मिरे चारों तरफ़ लहरें इसी जानिब उठी हैं

ये कैसी धूप और पानी में अफ़्ज़ाइश हुई है
बहिश्ती टहनियाँ इस ओढ़नी से झाँकती हैं

हमारा नाम भी बारा-दरी पर नक़्श करना
ये सारी जालियाँ हम ने निगाहों से बुनी हैं