इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
जाँ-सिपारी शजर-ए-बीद नहीं
सल्तनत दस्त-ब-दस्त आई है
जाम-ए-मय ख़ातम-ए-जमशेद नहीं
है तजल्ली तिरी सामान-ए-वजूद
ज़र्रा बे-परतव-ए-ख़ुर्शीद नहीं
राज़-ए-माशूक़ न रुस्वा हो जाए
वर्ना मर जाने में कुछ भेद नहीं
गर्दिश-ए-रंग-ए-तरब से डर है
ग़म-ए-महरूमी-ए-जावेद नहीं
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं
ग़ज़ल
इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब