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इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम | शाही शायरी
ishq se bach ke kidhar jaenge hum

ग़ज़ल

इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

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इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम
है ये मौजूद जिधर जाएँगे हम

तन के बस रखिए क़ब्ज़ा पर हाथ
देखिए मुफ़्त में डर जाएँगे हम

तेरी दहलीज़ पर अपने सर को
एक दिन काट के धर जाएँगे हम

वो ये कहते हैं न दे दिल हम को
देख लेते ही मुकर जाएँगे हम

मनअ करते हो अबस यारो आज
उस के घर जाएँगे पर जाएँगे हम

दिल की लेनी है ख़बर हम को ज़रूर
आज तो फिर भी उधर जाएँगे हम

दम कहीं लेंगे न फिर ता-ब-अदम
तेरे कूचा से अगर जाएँगे हम

तू न गुज़रेगा जफ़ा से ज़ालिम
जान से अपनी गुज़र जाएँगे हम

ज़ीस्त बाक़ी है तो अपना 'रंगीं'
नाम इस इश्क़ में कर जाएँगे हम