इश्क़ पर ज़ोर चल नहीं सकता
दिल सँभाले सँभल नहीं सकता
आ के दुनिया में इंक़लाब कोई
दिल की दुनिया बदल नहीं सकता
उन की नज़रें बदल गईं वर्ना
यूँ ज़माना बदल नहीं सकता
रंग-ए-हस्ती है इंक़लाब अगर
रंग-ए-हस्ती बदल नहीं सकता
आ गया हूँ वहाँ से घबरा कर
अब कहीं दिल बहल नहीं सकता
इश्क़ की आग में जो जलता है
वो जहन्नुम में जल नहीं सकता
वो निगाहें बदल गईं 'बिस्मिल'
अब ज़माना बदल नहीं सकता
ग़ज़ल
इश्क़ पर ज़ोर चल नहीं सकता
बिस्मिल सईदी