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इश्क़ पर दाना नहीं मोहताज-ए-तहरीक-ए-जमाल | शाही शायरी
ishq par dana nahin mohtaj-e-tahrik-e-jamal

ग़ज़ल

इश्क़ पर दाना नहीं मोहताज-ए-तहरीक-ए-जमाल

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

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इश्क़ पर दाना नहीं मोहताज-ए-तहरीक-ए-जमाल
जलने वाला जल बुझेगा शम-ए-सोज़ाँ देख कर

ऐ मआज़-अल्लाह वहशी और सलामत पैरहन
शर्म दामन-गीर होती है गरेबाँ देख कर