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इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच | शाही शायरी
ishq ne chuTki si li phir aa ke meri jaan ke bich

ग़ज़ल

इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच
आग सी कुछ लग गई है सीना-ए-बिरयाँ के बीच

अहल-ए-मानी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को
हम ने पाया है ख़ुदा को सूरत-ए-इंसाँ के बीच

इस सबब मैं जंग शाने से करूँ हूँ बार बार
दिल हुआ है गुम मिरा उस काकुल-ए-पेचाँ के बीच

ज़ुल्फ़ ओ चश्म ओ ख़ाल ओ ख़त चारों हैं दुश्मन दीन के
हक़ रक्खे ईमाँ सलामत ऐसे कुफ़्रिस्ताँ के बीच

नक़्द-ए-दिल खोया है हम ने जान कर इस राह में
फ़िल-हक़ीक़त आशिक़ों को सूद है नुक़साँ के बीच

गर अदू मेरी बदी करता है ख़ास ओ आम में
मैं उसे रुस्वा करूँगा बाँध कर दीवाँ के बीच

रात दिन जारी है आलम में मिरा फ़ैज़-ए-सुख़न
गो कि हूँ मुहताज पर 'हातिम' हूँ हिन्दोस्ताँ के बीच