इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच
आग सी कुछ लग गई है सीना-ए-बिरयाँ के बीच
अहल-ए-मानी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को
हम ने पाया है ख़ुदा को सूरत-ए-इंसाँ के बीच
इस सबब मैं जंग शाने से करूँ हूँ बार बार
दिल हुआ है गुम मिरा उस काकुल-ए-पेचाँ के बीच
ज़ुल्फ़ ओ चश्म ओ ख़ाल ओ ख़त चारों हैं दुश्मन दीन के
हक़ रक्खे ईमाँ सलामत ऐसे कुफ़्रिस्ताँ के बीच
नक़्द-ए-दिल खोया है हम ने जान कर इस राह में
फ़िल-हक़ीक़त आशिक़ों को सूद है नुक़साँ के बीच
गर अदू मेरी बदी करता है ख़ास ओ आम में
मैं उसे रुस्वा करूँगा बाँध कर दीवाँ के बीच
रात दिन जारी है आलम में मिरा फ़ैज़-ए-सुख़न
गो कि हूँ मुहताज पर 'हातिम' हूँ हिन्दोस्ताँ के बीच
ग़ज़ल
इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम