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इश्क़ में ज़ोर उम्र-भर मारा | शाही शायरी
ishq mein zor umr-bhar mara

ग़ज़ल

इश्क़ में ज़ोर उम्र-भर मारा

शाद लखनवी

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इश्क़ में ज़ोर उम्र-भर मारा
आक़िबत कोहकन ने सर मारा

नाला-ए-दिल ने ख़ुश-नवाई में
ता'ना-ए-सौत हज़ार पर मारा

ज़ख़्म पिन्हाँ दिल-ओ-जिगर में नहीं
न खुला क्या इधर-उधर मारा

मुझ को घड़ियालियों ने हिज्र की रात
बे-बजाए हुए गजर मारा

दहने बाएँ मलक हैं देख न लें
इस लिए देख-भाल कर मारा

सादगी पर मिटे हुए थे यूँही
और भी उस ने बन-सँवर मारा

मर-मिटों का पता कहीं न लगा
बे-निशानों का ढूँढ घर मारा

चश्म-ए-तर ने बहा के जू-ए-सरिश्क
मौज-ए-दरिया को धार पर मारा

हम वो हैं कुश्ता-ए-तमन्ना 'शाद'
ख़्वाहिश-ए-दिल को उम्र-भर मारा