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इश्क़ में क्या काम करती अक़्ल-ओ-दानाई की बात | शाही शायरी
ishq mein kya kaam karti aql-o-danai ki baat

ग़ज़ल

इश्क़ में क्या काम करती अक़्ल-ओ-दानाई की बात

ख़िज़्र बर्नी

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इश्क़ में क्या काम करती अक़्ल-ओ-दानाई की बात
दो-क़दम आगे चली इज़्ज़त से रुस्वाई की बात

वक़्त-ए-मुश्किल ग़ैर क्या अपने भी दुश्मन बन गए
कह गया है जोश में दीवाना गहराई की बात

काम करता है तसव्वुर काम आती है नज़र
बे-सबब होती नहीं है जल्वा-आराई की बात

मुस्कुराता हूँ तो आँखों में मचल जाते हैं अश्क
दर्द में घुल-मिल गई है एक हरजाई की बात

पर्दा-दारी की नुमाइश हो रही है रोज़-ओ-शब
इक तमाशा बन गई है ख़ुद तमाशाई की बात

ख़ुद-बख़ुद पैरों से रिसता है 'ख़िज़र' मेरे लहू
जब कोई करता है मुझ से आबला-पाई की बात