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इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है | शाही शायरी
ishq mein jis ke ye ahwal bana rakkha hai

ग़ज़ल

इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है

सलीम अहमद

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इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
अब वही कहता है इस वज़्अ में क्या रक्खा है

ले चले हो मुझे इस बज़्म में यारो लेकिन
कुछ मिरा हाल भी पहले से सुना रक्खा है

हाल-ए-दिल कौन सुनाए उसे फ़ुर्सत किस को
सब को इस आँख ने बातों में लगा रक्खा है

दिल बुरा था कि भला काम वफ़ा के आया
यार जाने भी दे इस बहस में क्या रक्खा है

ऐ सबा आ कि दिखाएँ तुझे वो गुल जिस ने
बातों ही बातों में गुलज़ार खिला रक्खा है

देख ऐ दिल न कहीं बात ये उस तक पहुँचे
चश्म-ए-नमनाक ने तूफ़ान उठा रक्खा है

हुस्न चाहे जिसे हँस बोल के अपना कर ले
दिल ने अपनों को भी बेगाना बना रक्खा है

दिल जो इस बज़्म में आता है तो जाता ही नहीं
एक दिन देखना दीवाना हुआ रक्खा है

हाल मत पूछ मोहब्बत का हवा है कुछ और
ला के किस ने ये सर-ए-राह दिया रक्खा है

इंतिज़ाम ऐसा कि घटती ही नहीं रौनक़-ए-बज़्म
हम से कितने हैं कि वादे पे लगा रक्खा है

होश तो पहले ही खो आए थे उस महफ़िल में
अब अगर जाएँ तो फिर दिल भी गया रक्खा है

तेरे आने की ख़बर पा के अभी से दिल ने
शिकवे को और किसी दिन पे उठा रक्खा है

बार-हा यूँ भी हुआ तेरी मोहब्बत की क़सम
जान कर हम ने तुझे ख़ुद से ख़फ़ा रक्खा है

दश्त ओ दर ख़ैर मनाएँ कि अभी वहशत में
इश्क़ ने पहला क़दम नाम-ए-ख़ुदा रक्खा है

हिज्र में रंज भी करते हैं पे इतना भी सलीम
यार तू ने तो अजब हाल बना रक्खा है