इश्क़ में हर बला को आने दो
मुझ को मेरा मक़ाम पाने दो
गुज़री बातों को कैसे जाने दूँ
अहद-ए-माज़ी को याद आने दो
मरहलों से गुरेज़ क्या माने'
हिम्मत-ए-ज़ीस्त को बढ़ाने दो
ख़ुद समझ लेंगे दिल को वो मेरे
उन को दिल के क़रीब आने दो
कल उन्हें भी तो फूल बनना है
आज ग़ुंचों को मुस्कुराने दो
उन की दरिया-दिली को देखें हम
आज दामन हमें बढ़ाने दो
जिन को 'राजे' क़रीब समझा है
वो सताते हैं तो सताने दो
ग़ज़ल
इश्क़ में हर बला को आने दो
माया खन्ना राजे बरेलवी