इश्क़ में दिल बन के दीवाना चला
आश्ना से हो के बेगाना चला
क़ुलक़ुल-ए-मीना से आती है सदा
भर चुका जिस वक़्त पैमाना चला
बे-ज़बानों को भी आई है ज़बाँ
बेड़ी ग़ुल करती है दीवाना चला
इश्क़-बाज़ी बाज़ी-ए-शतरंज है
चाल नादाँ रह गया दाना चला
शब जो आया बज़्म में वो शोला-रू
शम्अ गुल करने को परवाना चला
बू-ए-गुल ग़ुंचा से कहती है 'नसीम'
बात निकली मुँह से अफ़्साना चला
ग़ज़ल
इश्क़ में दिल बन के दीवाना चला
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी