इश्क़ में अब तो मर ही सकता हूँ
मैं तुझे ख़ुश तो कर ही सकता हूँ
कल मुझे ख़ाक हो के उड़ना है
आज तो मैं बिखर ही सकता हूँ
ठीक है प्यार मैं नहीं करता
प्यार का दम तो भर ही सकता हूँ
अपनी हद में रहा तो क्या होगा
हद से हद मैं गुज़र ही सकता हूँ
जानता है बिगाड़ने वाला
मैं फ़क़त अब सुधर ही सकता हूँ
ग़ज़ल
इश्क़ में अब तो मर ही सकता हूँ
तरकश प्रदीप