इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे
आ इसी तरह जो मिल जाइए गाहे गाहे
बे-रुख़ी अहल-ए-मोहब्बत से रवा तुम को नहीं
सदक़ा-ए-हुस्न सही मुझ पे निगाहे गाहे
दिल को मिज़्गाँ का तसव्वुर ही बहुत काम आया
डूबते को है सहारा पर-ए-काहे गाहे
आरज़ू है कि तिरे कूचे से हम भी गुज़रें
पैरहन चाक-ब-ईं हाल-ए-तबाहे गाहे
ज़िंदगी ख़त्म हुई बस इसी हसरत में कि वो
मुझ को पास अपने बुलाए मुझे चाहे गाहे
दिल में तस्वीर तुम्हारी न उतारूँ तो कहो
पर्दा-ए-रुख़ भी उठे जल्वा-पनाहे गाहे
'बर्क़'-ए-ग़म-दीदा तिरा मुस्तहिक़-ए-लुत्फ़ हुआ
सुनते हैं अर्श को जा लेती है आहे गाहे
ग़ज़ल
इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे
तल्हा रिज़वी बारक़