EN اردو
इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे | शाही शायरी
ishq kyun ruswa hua apna sar-e-rahe gahe

ग़ज़ल

इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे

तल्हा रिज़वी बारक़

;

इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे
आ इसी तरह जो मिल जाइए गाहे गाहे

बे-रुख़ी अहल-ए-मोहब्बत से रवा तुम को नहीं
सदक़ा-ए-हुस्न सही मुझ पे निगाहे गाहे

दिल को मिज़्गाँ का तसव्वुर ही बहुत काम आया
डूबते को है सहारा पर-ए-काहे गाहे

आरज़ू है कि तिरे कूचे से हम भी गुज़रें
पैरहन चाक-ब-ईं हाल-ए-तबाहे गाहे

ज़िंदगी ख़त्म हुई बस इसी हसरत में कि वो
मुझ को पास अपने बुलाए मुझे चाहे गाहे

दिल में तस्वीर तुम्हारी न उतारूँ तो कहो
पर्दा-ए-रुख़ भी उठे जल्वा-पनाहे गाहे

'बर्क़'-ए-ग़म-दीदा तिरा मुस्तहिक़-ए-लुत्फ़ हुआ
सुनते हैं अर्श को जा लेती है आहे गाहे