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इश्क़ क्या है ख़ुद-फ़रामोशी मुसलसल इज़्तिराब | शाही शायरी
ishq kya hai KHud-faramoshi musalsal iztirab

ग़ज़ल

इश्क़ क्या है ख़ुद-फ़रामोशी मुसलसल इज़्तिराब

सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी

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इश्क़ क्या है ख़ुद-फ़रामोशी मुसलसल इज़्तिराब
हुस्न क्या है जल्वा-आराई ब-अंदाज़-ए-हिजाब

रूह मुज़्तर दिल परेशाँ चश्म है महरूम-ए-ख़्वाब
मैं बहुत मसरूर हूँ ऐ इश्क़ तू है कामयाब

जाँ निसारों पर तुम्हारे राज़ ये इफ़शा हुआ
मौत लुत्फ़-ए-सरमदी है ज़ीस्त यकसर इज़्तिराब

चाक-दामानी का ग़म है अब न कुछ फ़िक्र-ए-रफ़ू
कर चुके दीवाने तुम से ज़िंदगी का इंतिसाब

गुल फ़सुर्दा हों ख़स-ओ-ख़ाशाक में बालीदगी
बाग़बाँ ऐसा तो आया था न पहले इंक़िलाब

दो-जहाँ में सिर्फ़ ये है इश्क़ की दौलत 'सग़ीर'
सीना-ए-पुर-दाग़ चश्म-ए-तर दिल-ए-हसरत-मआ'ब