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इश्क़ क्या है ग़म-ए-हस्ती का फ़ना हो जाना | शाही शायरी
ishq kya hai gham-e-hasti ka fana ho jaana

ग़ज़ल

इश्क़ क्या है ग़म-ए-हस्ती का फ़ना हो जाना

क़ैसर उमराव तोवी

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इश्क़ क्या है ग़म-ए-हस्ती का फ़ना हो जाना
पैकर-ए-ख़ाक का मिट मिट के ख़ुदा हो जाना

ये दू दो-जहाँ है तिरी ज़ुल्फ़ों का असीर
रास आया है उसे सैद-ए-बला हो जाना

ना-ख़ुदाई पे है नाज़ अहल-ए-सफ़ीना हुशियार
ना-ख़ुदा चाहता है आप ख़ुदा हो जाना

सैंकड़ों सज्दों में वाइ'ज़ को हुआ है हासिल
ज़ीनत-ए-महफ़िल-ए-अर्बाब-ए-रिया हो जाना

फ़ैज़-ए-आसी है कि इस बज़्म-ए-सुख़न में 'क़ैसर'
है मयस्सर मुझे यूँ गर्म-नवा हो जाना