इश्क़ को कामयाब होना था
आप को बे-नक़ाब होना था
क्या शिकायत तिरे तग़ाफ़ुल की
ख़त्म मेरा शबाब होना था
आप ने होश खो दिए मेरे
आज ही बे-नक़ाब होना था
क्यूँ न दिल छीन कर वो ले जाते
ज़िंदगी को ख़राब होना था
उन हसीनों के ज़ुल्म सहने को
मेरा ही इंतिख़ाब होना था
क्यूँ ज़ुलेख़ा का ख़्वाब बन न गया
गर मुझे कामयाब होना था
चीर कर दिल को दिल से निकली थी
आह को कामयाब होना था
मिल के 'शंकर' से आज उस ने कहा
तुझ को मस्त-ए-शराब होना था

ग़ज़ल
इश्क़ को कामयाब होना था
शंकर लाल शंकर