इश्क़ की टीसें जो मिज़राब-ए-रग-ए-जाँ हो गईं
रूह की मदहोश बेदारी का सामाँ हो गईं
प्यार की मीठी नज़र से तू ने जब देखा मुझे
तल्ख़ियाँ सब ज़िंदगी की लुत्फ़-ए-सामाँ हो गईं
अब लब-ए-रंगीं पे नूरीं मुस्कुराहट क्या कहूँ
बिजलियाँ गोया शफ़क़-ज़ारों में रक़्साँ हो गईं
माजरा-ए-शौक़ की बे-बाकियाँ उन पर निसार
हाए वो आँखें जो ज़ब्त-ए-ग़म में गिर्यां हो गईं
छा गईं दुश्वारियों पर मेरी सहल-अंगारियाँ
मुश्किलों का इक ख़याल आया कि आसाँ हो गईं
ग़ज़ल
इश्क़ की टीसें जो मिज़राब-ए-रग-ए-जाँ हो गईं
मजीद अमजद

