इश्क़ की दास्तान है प्यारे 
अपनी अपनी ज़बान है प्यारे 
कल तक ऐ दर्द ये तपाक न था 
आज क्यूँ मेहरबान है प्यारे 
साया-ए-इश्क़ से ख़ुदा ही बचाए 
एक ही क़हर मान है प्यारे 
इस को क्या कीजिए जो लब न खुलें 
यूँ तो मुँह में ज़बान है प्यारे 
ये तग़ाफ़ुल भी है निगह-आमेज़ 
इस में भी एक शान है प्यारे 
जिस ने ऐ दिल दिया है अपना ग़म 
उस से तू बद-गुमान है प्यारे 
दिल का आलम निगाह क्या जाने 
ये तो सिर्फ़ इक ज़बान है प्यारे 
मेरे अश्कों में एहतिमाम न देख 
आशिक़ी की ज़बान है प्यारे 
हम ज़माने से इंतिक़ाम तो लें 
इक हसीं दरमियान है प्यारे 
इश्क़ की एक एक नादानी 
इल्म-ओ-हिकमत की जान है प्यारे 
तू नहीं मैं हूँ मैं नहीं तू है 
अब कुछ ऐसा गुमान है प्यारे 
कहने सुनने में जो नहीं आती 
वो भी इक दास्तान है प्यारे 
रख क़दम फूँक फूँक कर नादाँ 
ज़र्रे ज़र्रे में जान है प्यारे 
किस को देखे से दिल को चोट लगी 
क्यूँ ये उतरी कमान है प्यारे 
तेरी बरहम-ख़िरामियों की क़सम 
दिल बहुत सख़्त जान है प्यारे 
हाँ तिरे अहद में 'जिगर' के सिवा 
हर कोई शादमान है प्यारे
 
        ग़ज़ल
इश्क़ की दास्तान है प्यारे
जिगर मुरादाबादी

