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इश्क़ की आँच में सुंदरता का भी धन जलता है | शाही शायरी
ishq ki aanch mein sundarta ka bhi dhan jalta hai

ग़ज़ल

इश्क़ की आँच में सुंदरता का भी धन जलता है

मुसव्विर सब्ज़वारी

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इश्क़ की आँच में सुंदरता का भी धन जलता है
परवाने की चिता पर शम्अ' का जोबन जलता है

अग्नी-बान हैं तेरी नज़रें आईना मत देख
तेरे शीश-महल का इक इक दर्पन जलता है

रंग-रूप की लौ भी नज़र उस भेद को क्या जाने
रूप आया है गुलशन पर या गुलशन जलता है

जब जब सुलगे कोई मोहन याद तो बरसों तक
मिट्टी का टीला आँखों का सूना बन जलता है

दिल की लगी किस ओर बुझे इक जलते दिल के साथ
सारा पूरब पच्छिम उतर दक्खन जलता है

मेरे सोज़-ओ-साज़ के रसिया तुझ को क्या मा'लूम
सात सुरों की आग में मेरा तन-मन जलता है

अंग अंग में उस के 'मुसव्विर' नर्म लवें सी हैं
जब वो हाथ में कंगन पहने कंगन जलता है