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इश्क़ की आज इंतिहा कर दो | शाही शायरी
ishq ki aaj intiha kar do

ग़ज़ल

इश्क़ की आज इंतिहा कर दो

फ़ैसल फेहमी

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इश्क़ की आज इंतिहा कर दो
रूह को जिस्म से जुदा कर दो

है ख़ुलासा यही मोहब्बत का
हो जो अच्छा उसे बुरा कर दो

ये जो आँखों से ख़ून जारी है
इस को हाथों की तुम हिना कर दो

वक़्त-ए-रुख़्सत गले लगा लेना
आख़िरी बार ये ख़ता कर दो

तुम मुझे छोड़ क्यूँ नहीं देती
अपने हक़ में तो फ़ैसला कर दो

शबनमी रात के अँधेरे को
बरहना जिस्म की क़बा कर दो

अब उठा दो नक़ाब चेहरे से
रात को चाँद से ख़फ़ा कर दो

है कि दुश्वार ज़िंदगी 'फ़हमी'
ख़ुद को बीमार बा-ख़ुदा कर दो