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इश्क़ करता हूँ, तक़ाज़ा नहीं कर सकता मैं | शाही शायरी
ishq karta hun, taqaza nahin kar sakta main

ग़ज़ल

इश्क़ करता हूँ, तक़ाज़ा नहीं कर सकता मैं

इलियास बाबर आवान

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इश्क़ करता हूँ, तक़ाज़ा नहीं कर सकता मैं
मिरा दामन है सो मेला नहीं कर सकता मैं

इतनी फ़ुर्सत है कि इक दुनिया बना सकता हूँ
पर कोई है जिसे अपना नहीं कर सकता मैं

कितने लोगों ने इन आँखों से शिफ़ा पाई है
एक बीमार को अच्छा नहीं कर सकता मैं

घर से निकला तो ये मुमकिन है भटक ही जाऊँ
यार अब अपना तो पीछा नहीं कर सकता मैं

रात भर शोर मचाता है किसी ख़ौफ़ के तहत
अपने हम-ज़ाद पे परचा नहीं कर सकता मैं

आख़िरी साँस है कुछ मुझ पे करम हो सय्याद
देख अब और तमाशा नहीं कर सकता मैं

भीक भी चाहिए उस दस्त-ए-सख़ी से मुझ को
और दामन भी कुशादा नहीं कर सकता मैं