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इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़ | शाही शायरी
ishq karne mein dil bhi kya hai shoKH

ग़ज़ल

इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़

सख़ी लख़नवी

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इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़
सैकड़ों में से इक चुना है शोख़

ये भी शोख़ी नई निकाली है
आज दुश्मन से कुछ ख़फ़ा है शोख़

अपनी आँखों में रात दिन रख कर
मैं ने ख़ुद उस को कर दिया है शोख़

अश्क-ए-ख़ूँ मेरे देख कर बोले
इस से तो कुछ मिरी हिना है शोख़

आँख से गिर के गोद में मचला
तिफ़्ल-ए-अश्क ऐसा हो गया है शोख़

बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है
किस क़दर गेसू-ए-दोता है शोख़

छेड़ती है तुम्हारे ज़ुल्फ़ों को
किस बला की मगर सबा है शोख़

बर में आईना के लिया न क़रार
जान-ए-मन अक्स भी तिरा है शोख़

फिर गई दूर से दिखा के झलक
हिज्र में ऐ 'सख़ी' क़ज़ा है शोख़