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इश्क़ का दर्द-ए-बे-दवा है ये | शाही शायरी
ishq ka dard-e-be-dawa hai ye

ग़ज़ल

इश्क़ का दर्द-ए-बे-दवा है ये

मीर मोहम्मदी बेदार

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इश्क़ का दर्द-ए-बे-दवा है ये
जाने तेरी बला कि क्या है ये

मार डालेगी एक आलम को
तेरी ऐ शोख़ गर अदा है ये

हर दम आता है और ही सज से
क्या ही अल्लाह मीरज़ा है ये

चाहिए उस का शर्बत-ए-दीदार
कि तप-ए-इश्क़ की दवा है ये

उस सितम-पेशा मेहर दुश्मन की
मेरे ऊपर अगर जफ़ा है ये

इस में उस की तो कुछ नहीं तक़्सीर
चाहने की मिरे सज़ा है ये

दिल-ए-'बेदार' को तो लूट लिया
ज़ुल्फ़ है या कोई बला है ये