EN اردو
इश्क़ इल्ज़ाम भी तो होता है | शाही शायरी
ishq ilzam bhi to hota hai

ग़ज़ल

इश्क़ इल्ज़ाम भी तो होता है

सफ़ी औरंगाबादी

;

इश्क़ इल्ज़ाम भी तो होता है
ये बुरा काम भी तो होता है

दोस्ती कुछ मुझी को तुम से नहीं
ये मरज़ आम भी तो होता है

नहीं तकलीफ़ ही मोहब्बत में
उस में आराम भी तो होता है

वा'दा करने में फिर तअम्मुल क्या
हाँ तुम्हें काम भी तो होता है

रात-दिन दर्द ही नहीं रहता
दिल को आराम भी तो होता है

नशा-ए-हुस्न और फिर कब तक
बादा-ए-ख़ाम भी तो होता है

नाम पर तेरे क्यूँ न आता प्यार
प्यार का नाम भी तो होता है

क्या तअ'ज्जुब जो हो विसाल में वस्ल
काम में काम भी तो होता है

ऐ 'सफ़ी' आशिक़ी की ये तारीफ़
और अंजाम भी तो होता है