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इश्क़ है वहशत है क्या है कुछ पता तो चाहिए | शाही शायरी
ishq hai wahshat hai kya hai kuchh pata to chahiye

ग़ज़ल

इश्क़ है वहशत है क्या है कुछ पता तो चाहिए

ख़ालिद जमाल

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इश्क़ है वहशत है क्या है कुछ पता तो चाहिए
क्या कहूँ मैं उस से आख़िर मुद्दआ' तो चाहिए

दरगुज़र कर मेरे मालिक तू नज़र आता नहीं
सर झुकाने के लिए कोई पता तो चाहिए

रात की पलकें भी ख़ाली घर के आँगन की तरह
रौशनी के वास्ते कोई दिया तो चाहिए

सर-ख़मीदा शहर में उस के हरीम-ए-नाज़ तक
बू-ए-गुल के वास्ते दस्त-ए-सबा तो चाहिए

ख़त-कशीदा सारी तहरीरें उसी के नाम हैं
हर्फ़-ए-हक़ को इज़्न दे सौत-ओ-सदा तो चाहिए

रात की शाख़ों पे कुछ ख़्वाबों के गुल-बूटे सजा
जागती आँखों को आख़िर आसरा तो चाहिए