इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन
सब्र ओ होश ओ क़रार का दुश्मन
दिल तिरी ज़ुल्फ़ देख क्यूँ न डरे
जाल हो है शिकार का दुश्मन
साथ अचरज है ज़ुल्फ़ ओ शाने का
मोर होता है मार का दुश्मन
दिल-ए-सोज़ाँ कूँ डर है अनझुवाँ सीं
आब हो है शरार का दुश्मन
क्या क़यामत है आशिक़ी के रश्क
यार होता है यार का दुश्मन
'आबरू' कौन जा के समझावे
क्यूँ हुआ दोस्त-दार का दुश्मन
ग़ज़ल
इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन
आबरू शाह मुबारक