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इश्क़ है दरिया-ए-आतिश तैर कर जाने का नाम | शाही शायरी
ishq hai dariya-e-atish tair kar jaane ka nam

ग़ज़ल

इश्क़ है दरिया-ए-आतिश तैर कर जाने का नाम

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

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इश्क़ है दरिया-ए-आतिश तैर कर जाने का नाम
हुस्न है सेहन-ए-चमन में फूल बरसाने का नाम

रात-भर शम-ए-हज़ीं इस फ़िक्र में जलती रही
क्यूँ बुलंद आख़िर है इस दुनिया में परवाने का ना

लैला-ओ-शीरीं की क्या कुछ कहिए अब इस गुल की बात
आज है ऊँचा चमन में जिस के अफ़्साने का नाम

तूर-ए-दिल की ख़ैर हो अब ताब-ए-नज़्ज़ारा कहाँ
हुस्न का जल्वा तुम्हारे बर्क़ गिर जाने का नाम

तू चमन है और तिरी रफ़्तार है मौज-ए-नसीम
ख़ामुशी ग़ुंचा हँसी है फूल खिल जाने का नाम

कहकशाँ है माँग तेरी ग़ाज़ा-ए-रुख़ चाँदनी
क़द ज़मीं पर माह-ओ-अंजुम के उतर आने का नाम

जब कभी शानों पे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं लहरा गई
बस यही है निकहत-ए-गुल के महक जाने का नाम