इश्क़ फ़ानी न हुस्न फ़ानी है
उन का हर लम्हा जावेदानी है
देख रिंदों पे इतना ता'न न कर
देख रुत किस क़दर सुहानी है
शैख़ फ़ानी सही ये धर मगर
तेरी जन्नत फ़क़त कहानी है
एक बे-कैफ़ सा तसलसुल है
कोई ग़म है न शादमानी है
ग़ज़ल
इश्क़ फ़ानी न हुस्न फ़ानी है
गोपाल मित्तल