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इश्क़-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ में किया कूच | शाही शायरी
ishq-e-ruKH-o-zulf mein kiya kuch

ग़ज़ल

इश्क़-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ में किया कूच

शाद लखनवी

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इश्क़-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ में किया कूच
शब आ के रहा सहर किया कूच

ख़य्यात-ए-नफ़स का है बजा कूच
दर्ज़ी का है क्या मक़ाम क्या कूच

जब मौज-ए-रवाँ कहीं न ठहरी
दम ले के हबाब कर गया कूच

हर-दम है रवा न उम्र-ए-इंसाँ
हर एक नफ़स है कर रहा कूच

परवाना जला तो शम्अ' बोली
तेरा है उधर इधर मिरा कूच

वो सोज़न-ए-साअत-ए-रवाँ हूँ
करती है जो हर मिनट सदा कूच

घुंघरू दम-ए-नज़अ बोलता है
आवाज़ जरस ने दी हुआ कूच

हम साथ थे पा-शिकस्ता जिस के
लश्कर वो जहाँ से कर गया कूच

शब-भर है फ़रोग़-ए-शो'ला ऐ 'शाद'
हंगाम-ए-सहर है शम्अ' का कूच