इश्क़-ए-बुताँ का ले के सहारा कभी कभी
अपने ख़ुदा को हम ने पुकारा कभी कभी
आसूदा-ए-ख़ातिर ही नहीं मत्मह-ए-वफ़ा
ग़म भी किया है हम ने गवारा कभी कभी
इस इंतिहा-ए-तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
हम ने लिया है नाम तुम्हारा कभी कभी
तूफ़ाँ का ख़ौफ़ है अभी शायद करिश्मा-कार
आता है सामने जो किनारा कभी कभी
तन्हा-रवी ने रक्खी हमारे जुनूँ की लाज
गो अहल-ए-कारवाँ ने पुकारा कभी कभी
अब क्या कहें दिल-ए-मुतलव्विन-मिज़ाज को
अक्सर ये आप का है हमारा कभी कभी
पैहम सितम से इश्क़ की तस्कीन हो न जाए
ऐ दोस्त इल्तिफ़ात ख़ुदा-रा कभी कभी
फ़रियाद-ए-ग़म से 'अर्श' सँभलता है दिल मगर
लेते हैं अहल-ए-दिल ये सहारा कभी कभी
ग़ज़ल
इश्क़-ए-बुताँ का ले के सहारा कभी कभी
अर्श मलसियानी