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इश्क़ और इश्क़ के आदाब का क्या करना है | शाही शायरी
ishq aur ishq ke aadab ka kya karna hai

ग़ज़ल

इश्क़ और इश्क़ के आदाब का क्या करना है

क़य्यूम ताहिर

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इश्क़ और इश्क़ के आदाब का क्या करना है
तू नहीं है तो किसी ख़्वाब का क्या करना है

जब तिरा नाम मिरे नाम के साथ आया नहीं
हर्फ़ का लफ़्ज़ का एराब का क्या करना है

अब समुंदर है न पर हैं न शब-ए-चार-दहुम
अब तिरी आँख के महताब का क्या करना है

इक यही चादर-ए-हिज्राँ मुझे दे कर उस ने
कह के रुख़्सत किया अस्बाब का क्या करना है

कतरनें रंज की साँसों में गिरह डालती हैं
अब किसी रेशम-ओ-किम-ख़्वाब का क्या करना है

आसमाँ चश्म बराबर भी न तारा कोई
अब बता रौज़न-ए-ख़ुश-ताब का क्या करना है