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इस ज़ुल्फ़ पे महव हो गए हम | शाही शायरी
is zulf pe mahw ho gae hum

ग़ज़ल

इस ज़ुल्फ़ पे महव हो गए हम

मारूफ़ देहलवी

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इस ज़ुल्फ़ पे महव हो गए हम
या'नी सर-ए-शाम सो गए हम

कहते थे हमेशा जाओ जाओ
आख़िर इक रोज़ लो गए हम

ऐ मेहर-लक़ा मिसाल-ए-साया
तुझ में अपने को खो गए हम

अपने आमद-ओ-रफ़्त मौज-ए-दरिया
जाते नहीं याँ से गो गए हम

क्या शे'र हैं आब-दार 'मारूफ़'
गोया मोती पिरो गए हम